अगर इस बात को नजरअंदाज कर दूँ कि
हम जैसे भी हैं अच्छे-बुरे , सच्चे-झूठे
पल-पल बदलती परिस्थितियों के हिसाब से
बदलती रहती है हमारी मानसिकता
और बदलता रहता है हमारा सामने वाले के साथ व्यवहार।
तो भी मैं स्वयं को दोषी मानकर
तुमसे क्षमा मांग सकता हूँ किन्तु
समाज का ताना-बाना ही ऐसा है
इसमें तुम्हारा क्या दोष ?
तुम्हे अगर याद हो तो गौर करना कि
मैंने केवल प्यारी बातें नहीं की थी तुमसे।
मैंने बातें जब भी किया तुमसे,
स्वाभाविक रूप से किया बिना किसी अतिशयोक्ति के।
अलग बात है कि परिस्थितियों के वजह से
मैंने टीका - टिप्पनी ज्यादा की
कुछ ज्यादा ही मजाक किया
और बहुत कम किया प्यारी बातें।
जिससे तुम हो पाती प्रभावित
जैसे कोई मोर जाहिर करता है अपना प्रेम पंख फैलाकर
सुंदरता बिखेर देता है फ़िज़ा में।
पर मुझे दिखावा नहीं करना था
जैसे एक अमरुद समय के साथ मिठास लाता है खुद में
मैं भी शुरुआत में कड़वा लगा हूँगा तुम्हे
इसका मतलब यह तो नहीं कि
तुम्हे भी इंतज़ार नहीं करना चाहिए था।
खैर वो तो तुम्हारा चुनाव है लेकिन
मुझे जैसे ही अपनी गलती का एहसास हुआ
मैं बेचैन हुआ कि तुमसे मांग लूँ माफ़ी
और मैंने हिम्मत कर मांगी थी माफ़ी भी उस रोज।
हो सकता है तुम्हे लगा हो
मैंने कुछ ज्यादा बड़ी गलती की होगी
इसलिए मांगने आया था माफ़ी।
मेरी नजर में गलती तो गलती थी
तुम्हारी नजर में वो बड़ी-छोटी हुई
तो समाज दोषी है जिसने तय किये हैं मानक
इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं।
-प्रशांत
Atisundar 👌👌
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