Friday, January 07, 2022

मैंने उन आँखों में दुनिया देखनी चाही


उस रोज ऐसा क्या हुआ होगा 

कि मैंने उन आँखों में दुनिया देखनी चाही ?


अपने चेहरे पर जैसा मैं अक्सर रहता हूँ 

दुनिया भर की शिकन लिए बैठा था। 

गुस्से में था उस रोज मैं ,

शिकार पर निकले एक भेड़िये की परछाई थी मेरे चेहरे पर 

गुस्से में सामने क्या ही दीखता है किन्तु 

उस पल वो दो आँखें दिखीं। 

उन दो आँखों में मुझे वो सब देखा 

जिसकी खोज थी मुझे 

या शायद जिसे खोजने की अंतहीन कोशिश करता मैं। 


उसने मुझे पहली नजर में शैतान भेड़िया समझा होगा ,

शायद इसलिए वो मुझसे बचने लगी। 

मैं जब ये समझा तब तक देर हो चुकी थी किन्तु 

मुझे उसकी आँखों में मेरा भविष्य दिखा था 

मैं उन्हें खोना नहीं चाहता था। 

इसलिए मैंने हर वो हरकत की 

जिससे अपनी गलती सुधार सकूँ 

चेहरे पर मासूमियत लाने का प्रयास किया। 

पर वो कोई मेमना तो थी नहीं 

कि एक भेड़िये को खरगोश समझने की गलती करती। 

ख़ैर 

जब भी अवसर मिला मैंने करीब आने की कोशिश की 

अपनी कहानी सुनाई , उसकी सुननी चाही 

मुझे क्या मालूम था मैंने ये सब करके 

केवल उसे परेशां किया था। 

इससे बुरा क्या होगा किसी के लिए 

कि कोई उसे दोस्त भी कहे और 

दोस्ती भी न रखे 

जैसे सर्दी के आग में गर्मी  न हो। 

जैसे फूलों में आकर्षण न हो। 


मैं ये बात जानकर कि अब जो हो गई है 

उसे बदल नहीं सकता, चेहरे पर उदासी लाई 

उसकी आँखों में अपने लिए सहानुभूति खोजी  किन्तु 

वो कोई बच्ची तो थी नहीं कि 

असलियत और नाटक में फर्क न जानती हो। 


उस रोज आखिरी बार जब उसकी आँखों को देखा 

तो मुझे लगा कि दुनिया थम क्यूं नहीं जाती है ?

ये जानते हुए कि मेरे चाहने से एक रेल तक तो रुक नहीं सकती है 

मैं दुनिया रोकनी चाही 

सत्य को असत्य करना चाहा था। 


नजरों से ओझल होते ही 

कितना परेशां हुआ मैं 

जिन एक दो को जानता था मैं 

उनसे जाने अनजाने में उसकी ही बातें करने लगा। 


एक हारे हुए इंसान की भांति 

अपनी एकदम छोटी उपलब्धियों पर भी 

कुछ तारीफ की अपेक्षा रखे हुए 

सुनाये जा रहा था उस सच को 

जो मेरे अलावा अब तक उसकी 

आंखे ही जानती थी। 


अब लोग पूछते हैं कि 

क्या हुआ ?

सिवाय बातों को काटने के मेरे पास चारा ही 

क्या बचता है ?


एहसास होता है अब 

मैं कभी उससे ये नहीं कह पाया कि 

'आपकी आँखों ने मुझे प्रेम मतलब समझाया है'

मैं उसे पाने की इतनी जल्दी में था कि 

उसके साथ उन लम्हों को भी खो दिया। 

मैंने यहाँ खोना लिखा है 

नुकसान नहीं 

मैंने बाजार के किसी वस्तु की तरह 

उसे पाने की कोशिश की थी ,

यह सौदा तो था नहीं 

यह तो था प्रेम। 

इसमें बेईमानी तो थी नहीं 

और उस वक़्त मैं शायद इंसान था नहीं 

मैं था एक असफल व्यापारी। 

उस रोज की बेसब्री पर न अब पछताता हूँ 

और न ही हँसता हूँ अपनी बचकानी हरकतों पर 

क्यूंकि उस रोज मेरे जीवन में केवल एक घटना घटी थी 

वह था  उन आँखों में सच का दिख जाना। 


उस रोज के बाद अब जब भी 

दो पल का चैन मिलता है मुझे 

वो दो आंखे दिखती है 

दिखती है उन सपनो का बोझ 

जो अब बिना उनकी पूरी नहीं हो सकती है 

न मैं अब झरने किनारे बैठूंगा 

और न अब कभी किसी से आँखों की सुंदरता की चर्चा करूँगा। 

- प्रशांत 💓







4 comments:

  1. ये कहानी लगती जैसे कही सुनी है, ये कहानी तेरी है, शायद कुछ पल मेरे है। होसकता है कुछ वाक्य और लोगो के है।

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  2. Replies
    1. शुक्रिया मित्र।
      लो 🍅 खाओ ।।

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आप को ब्लॉग कैसा लगा जरूर लिखें यह विभिन्न रूपों में मेरा मदद करेगा।
आपके कमेंट के लिए अग्रिम धन्यवाद सहित -प्रशांत

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