कई बार चाहा कि कह दूँ तुमसे,
न तो मुझे कोई शेर ही याद है और
न ही कोई शायरी लिख रखा है मैंने तुम्हारे लिए।
अब तो चिठ्ठी भी नहीं लिखनी होती है
कुछ शब्द, इंटरनेट और एक फ़ोन
काफी है इजहार करने के लिए।
तुमसे मिलने के पहले
हस भी लिया करता कि
क्या बेफज़ूल की बात है इश्क
और ये कौन बेवकूफ लोग होते हैं
जो इश्क किया करते हैं।
कई बार चाहा कि कह दूँ तुमसे
काश मैं तुमसे मिला ही न होता
तो खोया रहता अपने वहम में।
किसी के लिए होता होगा आसान
जुबां पर सच को ला देना ,
ख्वाब किसी एक के लिए देखना ,
जिंदगी किसी दूसरे के साथ जी लेना।
कई बार चाहा कि कह दूँ तुमसे
न तो अब मैं ख्वाब ही देख पाउँगा
किसी और के लिए और
न जी ही पाउँगा खुद के लिए।
जिन्हे तजुर्बा था
उन्होंने इतिल्ला किया था मुझे
किसी के लिए मेरी आँखों में
प्रेम दिख रहा था उन्हें
उस वक़्त जब मैं खुद अनजान था इससे।
भांपने वाले ये भी भांप गए थे
कि मैं इजहार नहीं कर पाउँगा
उन्हें लगा कि मेरा दिल टूट जायेगा
पर सीख जायेगा।
मुझे लगा कि इसमें सीखने लायक
कुछ है ही नहीं
मैं गलतियां करूँगा तो तुम सुधार दोगी।
कई बार चाहा कि कह दूँ तुमसे
मैंने सिखने के लिए तुमसे कोई
आस नहीं लगाई थी।
लोग कहते हैं कि
मैंने इस मामले में जल्दबाजी की
इसलिए तुम समझ नहीं पायी।
कई बार चाहा कि कह दूँ तुमसे
न ही मैंने तुम्हारा इंतजार ही किया था
और न ही मैं करने वाला था ,
तुमसे मिलना ही अप्रत्याशित था
तुमसे मिलने के पहले तक
मेरे लिए रुक जाने का
अर्थ था थक जाना।
कई बार चाहा कि मांग लूँ तुमसे माफ़ी
और कह दूँ कि
मुझे एक और मौका दे दो
कि कह सकूँ हरेक बात के लिए शुक्रिया।
-प्रशांत
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