Tuesday, May 08, 2018

रेलयात्रा : अवलोकन

पिछली बार जब आनंद विहार से घर जाने क लिए ट्रेन पर बैठा था तो मेरी सीट पक्की थी इसलिए निश्चिंत होकर सारी तैयारी करके रेलयात्रा किया था पर हर दिन एक जैसा नहीं होता है। मुझे स्नातक अंतिम वर्ष में नामांकन कराने के लिए रजौली जाना है और एक महिने पहले से ही स्लीपर के लिए टिकट देखना शुरू किया था पर एक भी सीट खाली नहीं मिली। वेटिंग का आकड़ा ऐसा कि कन्फर्म होन की कोइ आशा नहीं दिखा। 3एसी में खोजा पर उसका हाल भी यही निकला। उससे आगे मै देख नहीं सकता था, आखिर हर व्यक्ति की तरह मेरी भी कोई सीमा है। अगर आप सोच रहे हैं कि फ्लाइट का विकल्प है कि नहीं तो बतला दूं कि दिल्ली से रजौली जाने के लिए या तो पटना हवाईअड्डा उतरना पड़ेगा या गया और मेरे लिए दोनों की विकल्प सही नहीं ठहरता, उपर से किराये इतना की चार बार अप-डाउन कर लूं। वैसे मेरे द्वार तक तो रेल भी नहीं पहुंचाती है पर और कोई विकल्प न होने के कारण चुनाव में यही जीतता है। आप ये भी पुछ सकते हैं कि 'इतना रोना कर लिया, तत्काल टिकट के बारे में नहीं सुना क्या?' हां, जरुर सुना है और कई बार प्रयोग भी किया है पर इस बार लगातार तीन दिनों से प्रयास करने के बाद भी कन्फर्म टिकट हाथ नहीं लगा। क्या करें जनाब डिमांड इतना है कि रेलवे हम जैसे को सप्लाई कर नहीं पाता है या करना नहीं चाहता है। पैसें अब हफ्ताह भर के लिये रेलवे के पास गिरवी हो गया (आखिर टिकट बुक करने की हिम्मत जो की थी मैंने) और 60*3 =180 रुपये जुर्माना लगा पता नहीं किस गलती की। रेलवे कह कर लेता है, क्यों? तो कल फैसला किया कि जनरल टिकट लेकर चढ़ जाउंगा रेल में और बाकि बाद में सोचूंगा। पहले भी मजबूरी में कई बार ये कदम उठा चूका हूँ और दूर्भाग्य से बहुत ही बुरे अनुभव रहे हैं। जानता हूँ कि लाखों लोग इससे भी बुरे तरह से सफर करते हैं भारतीय रेल में।
आज सुबह चार बजे ही जग गया पर मन नहीं मान रहा था कि आज घर जाना है। लगभग आधे घंट बाद तैयार हुआ फिर कुछ कपड़े और पानी लेकर निकल पड़ा। एक बैग बस और वो भी लगभग खाली क्योंकि डर रहा था कि आदमी के लिए जगह नहीं मिलता है तो सामान कहां रखुंगा? वैसे मैं कम से कम दो थैले तो जरुर लेता हूँ। आनंद विहार पहुचकर लग गया अनारक्षित टिकट वाले लाइन में। 'एक कोडरमा का देना भैया' ऐसा कहते ही उसने मुंह बना लिया। बोला आज तो कोडरमा के लिए कोई ट्रेन ही नहीं। मैने कहा आनंद विहार-भुवनेश्वर एक्सप्रेस तो है। उसने जवाब दिया कि उसमें जनरल बोगी नहीं है। मैं फस गया था कुछ सोचकर वहां से हट गया। अब तो पक्का कर लिया कि स्लीपर बोगी में चढ़ जाना है और फाइन भरकर सफर करना है  इसलिए दूसरे काउंटर पर गया और एक मुगल सराय का मांगा। उसने दे दिया क्योंकि नॉर्थ इस्ट एक्सप्रेस मुगल सराय होते हुये जाती है। मैनें लिया और सीधा गया आनंद विहार-भुवनेश्वर के एस-6 में। ज्यादा भीड़ नहीं थी, एक जगह खाली देखकर बैठ गया। सामने चार-पांच लोग थे। दो व्यक्ति किसी चीज पर आपस में सलाह-मशविरा कर रहे थे, एक व्यक्ति जो ज्यादा उम्र के थे पर कम उम्र के लग रहे थे (बाद में बातचीत के दौरान पता चला कि उनका नाम संजय है और बोकारो के रहने वाले हैं पर कोडरमा में शिक्षक हैं) वे इयरफोन लगाकर कुछ सुन रहे थे।उनके ठीक सामन बैठे व्यक्ति विडियो कॉलिंग कर रहे थे( बाद में पता चला कि उनका नाम अमीत जी हैं और वे संजय जी के साथ हैं)। खैर ट्रेन अपने निर्धारित समय पर चल पड़ी। चलने से पहले मैने अनाउंसमेंट पर ध्यान दिया -'एक नंबर प्लेटफॉर्म पर 6 मई वाली सीमांचल एक्सप्रेस लगी है जो 7 खुलेगी। 7 मई वाली ट्रेन 12 बजकर 20 मिनट में खुलेगी। 7 मई वाले यात्री कृपया इसमें न बैठें।' हमलोग हसने लगे। 24 घंटे देरी से चल रही है वह ट्रेन, वो तो गनीमत है कि कैंसल नहीं हुआ।कल ही पढ़ा था कि बिहार की ट्रेनें सबसे ज्यादा लेट चल रही है। कानपुर-इलाहाबाद-मुगलसराय रुट सबसे व्यस्त रुट है, एक अनुमान के मुताबिक हर तीन मिनट में एक ट्रेन पास करती है इस रुट पर।दिल्ली से बिहार, झारखंड, बंगाल, उड़ीसा, नॉर्थ ईस्ट की ट्रेन इस रुट पर चलती है और मुंबई वाली ट्रेन भी। उपर से पुरानी पटरियां होने के कारण लगातार मरम्मत कार्य भी चलते रहता है।इसके अलावा भी और बहुत से कारण है। समझ में नहीं आता कि रेल मंत्रालय क्या करता है?
 कुछ ही देर में रेलगाड़ी गाजियाबाद पहुँच गई और इसी के साथ शुरू हुआ चर्चा का दौर। हम सबमें एक ही बात समान थी कि हमलोग दिल्ली से एक ही रेल में बैठे थे और अपने अनुभवों व विचारों को आपस में साझा करने के लिए उत्सुक थे। मुगल सराय आते आते हम सबने खूब बातें की, समाज और लोगों की सोच पर कई छोटी-छोटी चर्चाएं की। राजनीति पर भी बातें हुई और रेल के लेट-लतीफी पर गहरा विश्लेषण भी किया। आशिष जी जो कि दिल्ली से झारखंड अपने घर जा रहे थे, ने मेरी एक फोटो भी खींच दी।

बातें करते करते पता चला कि अमीत जी व संजय जी झारखंड में शिक्षक हैं परंतु एक मार्केटिंग व्यवसाय में भी जुड़े हुए हैं, उन्होंने समझाया कि ग्रामीण क्षेत्र के एक शिक्षक को इस क्षेत्र में आने से पहले कितनी बातों का सामना करना पड़ा और कैसे उन्होंने उस हिचक को दूर किया। वे अपने कंपनी की तरफ से दिल्ली आये थे एक मोटिवेशनल ट्रेनिंग के लिए। दोनों ने ही इस बात को स्वीकार किया कि इससे उनके अंदर कितना सकारात्मक बदलाव आया है। अब वे थोड़े नये तरीके से सोचते हैं। उनके मुताबिक 'शिक्षक होने के कारण उनकी जीविका तो आराम से कट जायेगी परंतु बाकि बचे खाली समय का भी सदुपयोग होना चाहिए, अगर आपके अंदर काबिलियत है और समय भी है तो क्यों न इसका उपयोग किया जाये। हम अगर मार्केटिंग क्षेत्र से कुछ सीखते हैं तो उसका उपयोग कर हम निश्चित ही पुराने पथ से नये पथ की ओर जायेंगे और समाज भी लाभान्वित होगा।'
मैने जब पुछा कि मार्केटिंग के नाम पर बहुत सी फर्जी कंपनियां भोले भाले लोगों को अपना शिकार बना रही हैं तो संजय जी ने समझाया कि इसका कारण जानकारी का अभाव है। अगर कोई कंपनी केवल लोगों को सदस्य बनाने पर जोर देती है तो वो निश्चित तौर पर फर्जी है परंतु अगर कंपनी उत्पाद बेचने पर फोकस करती है तो वो फर्जी नहीं हो सकती है, इसलिये जानकारी रखना अनिवार्य है।
बातें करते हुए हम कानपुर पहुंच गए। रेलगाड़ी अब अपने नियत समय से नहीं चल रही थी बल्कि अपने असलियत पर आ गई थी।
इस दौरान टीटीई भी आये। मैन निवेदन किया कि मुगल सराय के बदले कोडरमा तक कर दें तो उन्होंने यह संभव नहीं कहकर मुगलसराय तक फाइन काट लिया कुल 430 रुपये। मेरे लिये परेशानी बढ़ गई, अब मुगल सराय उतरकर फिर से टिकट लेना होगा और दुसरी रेल से जाना पड़ेगा।
यह सब कितना कष्टकारी होता है वो तो इस तरह से सफर करने वाले ही जान पाते हैं। मेरे लिए यह सब बर्दाश्त करना और मुश्किल हो जाता है जब मैं देखता हूँ कि सीट न मिलने की वजह से कोई महिला रात में फर्श पर सोती है (आज मैं भी अखबार बिछाकर बैठ गया) और सीट पर कोई युवक सोया रहता है, मैं युवक को दोषी नहीं ठहरा सकता पर कुछ तो गलत हो रहा होता है। किसी एक जगह के लिए दो लोगों को लड़ते आपने कई बार देखा होगा पर जरा उनकी स्थिति की कल्पना करने की कोशिश कीजिये। आपको समझ में आयेगा कि वे क्यों लड़ना नहीं चाहत हुये भी आपस में उलझ रहे हैं।
 देर हो गई पर शाम तक हमारी रेलगाड़ी इलाहाबाद पहुंच गई। पुल से गंगा जी को प्रणाम किया और हम आगे निकल गये। शाम के वक्त गंगा जी का घाट एक अलग ही दुनिया मालूम पड़ रही थी।

इलाहाबाद में एक गांव का परिवार आकर बैठा। वे प्रसन्न थे, जैसे ग्रामीण प्रसन्न होते हैं बिल्कुल वैसे ही। मैं अपने हिसाब से जोड़-घटाव में व्यस्त हो गया पर मुगल सराय से 5 किमी पहले मेरी सारी प्लानिंग चौपट हो गयी। मैंने सभी को अलविदा कहा और 9:20 में द्वार पर खड़ा हो गया। पर द्वार पर खड़ा होने के बाद रेल वहीं खड़ी हो गयी और बज गये साढ़े दश। पापा से बात करने के बाद इसी रेल में बेटिकट यात्रा करने को राजी हो गया, क्योंकि अब अगर उतरता तो टिकट बेशक खरीद लेता मैं पर रेल नहीं मिलती। आखिर गलती रेलवे की है कि मुझे बेटिकट फर्श पर यात्रा करना पड़ा पर सोचता हूँ अगर टीटीई नहीं समझेगा तो क्या करुंगा? खैर अभी बैठा हूँ और आगे लिखने का इरादा नहीं है।


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