Wednesday, January 17, 2024

कुछ न कर पाने की पीड़ा

 

अमरुद के पेड़ से कोई अमरुद तोड़ ले। जो पीड़ा उस पेड़ को और अमरुद को होती है शायद ऐसी होती है कुछ न कर पाने की पीड़ा। कई घंटो से, नहीं कई दिनों से, नहीं नहीं कई सालों से मुझे इस पीड़ा को सहना पड़ रहा है पर कई मौके ऐसे भी आये जब मै इसे सहन नहीं कर पाया और सूखने लगा अमरुद के पेड़ की तरह , सुखता देख करुणामयी माँ ने अपने अलग अलग रूपों में आकर मुझे प्रेरणा दी किन्तु मानव मन प्रेरणा को ढांढस समझ बैठा और फिर वापस लौट आता है पश्चाताप में जलने को। मुझे लगा कि मैंने ज्यादा कष्ट सहा है किन्तु बार बार याद करने पर भी मुझे मेरे कष्ट याद नहीं आते हैं अब शायद ये भी मानव मन का स्वाभाव रहा समय को काटने का किन्तु जो सच में है वो कुछ न कर पाने की पीड़ा। हो सकता है ये भी एक छलावा हो मुझे समय के मार को खिलाते रहने के लिए किन्तु कई उद्यम करने के बाद भी लगता है कि कुछ तो बाकी रहा जो करना था , कई बार मनपसंद खेल खेलने के बाद भी जो टीस रह जाती है वैसा ही कुछ रह गया है। कोई अगर पूछ ले एकबार में बताओ कि तुम क्या नहीं कर पाए ? तो शायद ही सच बता पाऊं क्यूंकि अंदर से ऐसा उत्तर आता ही नहीं दीखता है घंटो तक किन्तु कुछ सहानुभूति की चाह लिए माँ-बाप-भाई के लिए उचित नहीं कर पाया, समाज के भाई-बंधुओं के लिए मार्ग नहीं बना पाया , जिनके सहारे मैं इतने बरस जी पाया हूँ उनके लिए कुछ तैयार नहीं कर पाया , धरती और प्रकृति का ऋण नहीं चूका पाया , तड़पते और कलपते जीव-जंतुओं की सेवा नहीं कर पाया, स्वयं को खुश नहीं रख पाया और ऐसे असंख्य कारण गिनाता जाऊंगा। वही बात हो गयी जिससे बचने की चाह है उसी में फसता जाता हूँ अक्सर। ये पीड़ा मुझे सबक भी ऐसी देती है कि कुछ समय में ऐसे भूल जाता हूँ जैसे अमरुद का पेड़ भूल जाता है नए अमरुद के फूल आने पर टूटे हुए को। अभी जिस उम्र में हूँ वहां अधिकतर बचपन के ख्वाहिशें जिसमे से कुछ बेसिरपैर की भी है जो पुरे नहीं हो पाए है अक्सर आकर घंटो हिसाब-किताब लेता है मुझसे और पिछले कुछ सालों में बुने आधे-अधूरे सपने पीछा नहीं छोड़ती है मुझे महसूस होता है कि जैसे नदी अपने उद्गम से बहुत दूर भटक रही हो समुद्र में मिलने को किन्तु अब नदी में धारा ही नहीं बची, जैसे सभी नदिया गंगा - रेवा सी पवित्र नहीं होती है कुछ छोटी और कमजोर महसूस करती है ,  बारिश पर आशा रखती है , समुद्र में मिलने की चाह छोड़कर कोई सहायक नदी ढूंढती है साथ बढ़ने को किन्तु अक्सर ऐसा होता नहीं। मैं भी खुद को असहाय महसूस करने लगा कई बार गुरूजी ने कई बार याद दिलाया कि वो मेरे अंदर है कुछ भी ढूंढने की जरुरत नहीं है किन्तु मैं हर कुछ करने की चाहत लिए दिन पर दिन गवाता गया और इसी का फायदा उठाकर कुछ लोगों ने गंदे विचार मुझसे न चाहकर भी डाल दिए और उसे भी ढोता रहा मैं अब पश्चाताप के साथ और कुछ न कर पाने की पीड़ा के साथ। 

- प्रशांत 


    


Sunday, December 10, 2023

पेट नहीं होता तो भेंट नही होता

कोई कितना भी चाहे कि सूरज पूरब से न उगे और पश्चिम की ओर न बढ़े किंतु ये हो नहीं सकता है वैसे ही एक सवाल है जो रोज़ आ जाता है सामने, शायद अब ज्यादा रुबरु होता हूँ जीवन से इसलिये ये पापी पेट का सवाल आ जाता है सामने। 
ये सवाल गणित या विज्ञान के सवालों की तुलना में ज्यादा संतोषजनक उत्तर तो शायद ही कभी दे पाता है किंतु इस जीवन के दूसरे अन्य महत्वपूर्ण सवालों की तरह कम से कम रहस्यमई तो नहीं है जो कभी भी मुंह उठाके नहीं चली जाती है कि जीवन का उद्देश्य क्या है या जीवन का लक्ष्य अगर मौत नहीं है तो क्या है ? 
जो भी जीवित उसकी तरह मेरा भी सवाल है पेट भरना कैसे है ? ये सवाल अर्थशास्त्र से जुड़ा हुआ नहीं है, न ही विज्ञान से जुड़ा हुआ है, दर्शनशास्त्र का पता नहीं है ।  कुछ समय पहले तक जैसा लगता था एक समय कोई न कोई शास्त्र इस सवाल का उत्तर तो देता होगा। बचपन से एक उम्र तक सब इसी सवाल का उत्तर ढूंढते हैं ये पता चलने में मुझे वक़्त लगा खैर ये सवाल सब के लिए मौजू है लेकिन सब के लिए एक जैसा नहीं है।

कैसे बतलाउँ कि ये दुनियादारी किसकदर मुश्किल है। मैं अगर अपनी बात भी करूँ तो कभी आसमान जीतने की ख़्वाहिश रखने वाला मन जब से ये समझ गया कि भुख दुनिया को चलाती है सोच में पड़ जाता हूँ और ध्यान हो आता है कि ये बने बनाए रिश्ते समाज का जाल अचानक से बिखर जाएगा । अगर गलती से ही पापी पेट के सवाल का हल किसीको मिल गया जो कि कुछ लोगों को मिल जाया करता है तो दुनिया को कितना सहना पड़ता है। ये जो मैं कभी अच्छा लगता हूँ कभी  बुरा लगता हूँ वह इस पेट पे निर्भर करता है । साहित्य से लेके प्रेम की बातें और दिल दिमाग़ के सभी भूत -वर्तमान -भविष्य की कल्पनायें पेट से शुरू होती है और वहीं खत्म। जैसे भालुओं का नाच नचाने वाला मदारी जाते वक़्त कह देता है पेट नहीं होता तो भेट नहीं होता मैं भी ये ध्यान करता हूँ कि हम सब के लिए भी यही सच है।

प्रशांत 💚






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