Saturday, April 18, 2020

कोरोना और घर में सब्जियों का इंतजाम


पिछले दो-तीन दिनों से सुबह 9 बजे के करीब थैला उठाकर मैं घर से निकलता हूं सब्जियां लाने को। वैसे तो रजौली में सब्जियां कई जगह बिकती है, बजरंगबली चौक और हाट मेरा पसंदीदा जगह रहा है सब्जी खरीदने के लिए। इसके अलावा पुरानी बस स्टैंड और बीच बाजार से भी कभी-कभार खरीद लेता हूं परंतु अभी के हालात में जब घरों से कम से कम निकलना है तो कोशिश कर रहा हूं कि जितने नजदीक में सब्जी मिल जाए उतना अच्छा। इसलिए बाजार चला जाता हूं झोला उठाकर आस-पास के गांव से कुछ किसान, बच्चे और बूढ़ी औरतें कुछ ना कुछ बेचने के लिए सुबह ही आकर बैठ जाते हैं। बाजार के लोग तो इसी आस में रहते हैं व उनके आते ही वे सब्जियां खरीदने के लिए टूट पड़ते है, यह देखने लायक होता है। मैं अकसर देर से पहुँचता हूँ किंतु फिर भी थोड़ा देर में जाने के बाद भी मेरे हिस्से कुछ ना कुछ आ ही जाता है। आज ककड़ी, भिंडी, साग, मिर्च, बैगन, टमाटर आदि बेच रहे थे वे सब। आमतौर पर प्याज, लहसुन,आलू और शहतूत, केंदुई जैसे कुछ फल भी कभी कभार मिल जाते हैं किंतु अभी सब कोई डर रहा है। ज्यादा देर बाजार में वे टिकना भी नहीं चाहते हैं इसलिए कम दाम में ही जल्दी-जल्दी बेच कर घर निकल जाते हैं।आज मैंने भिंडी खरीदी 1 किलो ₹25 में और ककड़ी भी 1 किलो ₹25 में, एक किसान के यहां एक पाव खीरा बचा हुआ था उन्होंने ₹10 में मुझे दिया। मैं तरबूज खोज रहा था परंतु वो मिला नहीं इसलिए उतना ही लेकर घर चला आया।
घर में भी मां के साथ मिलकर अपना बगिया बनाया हुआ है हमने। सहजन या मूनगा परसो ही तोड़ा था हमने। इस साल सहजन ना केवल हमने खाया बल्कि आस पड़ोस में बाटा भी, गजब की सब्जी है एक बार में लग भी जाती है और अगले साल से फरना शुरू भी हो जाता है।इसलिए दो तीन जगह और लगा दिया है इसबार। इसके अलावा हर 2 दिन में 2-3 बैगन मां तोड़कर चोखा बना देती है। टमाटर इस बार पकने से पहले पंछियों, चूहों और कीड़ों का शिकार हो जा रहा है इसलिए कच्चा ही रोज तोड़ लेते हैं। मिर्च तो खैर आज तक बाहर से खरीदने की जरूरत नहीं पड़ी। एक थंभी केला भी फरा हुआ है। दो सप्ताह में केले खाने लायक हो जाएंगे। इस साल पहली बार पांच कागजी नींबू फरा है और चार पपीता भी। मां सुबह-सुबह काफी मेहनत करती है, सभी पेड़ों को पानी देती है और सब्जियां तोड़ती है। 5 दिन पहले एक बीज भंडार से ₹30 का भिंडी, लाल साग और परोर ( नेनुआ ) का बीज लाया था उसे भी अलग-अलग जगहों पर लगा दिया है। भिंडी और लाल साग तो परसों ही उग आई थी, परोर नहीं उगा था। आज सुबह देखा कि 4-5 परोर भी उग आए हैं। शाम को पानी देना पड़ता है और कुछ ज्यादा काम तो नहीं है परंतु 20- 25 दिनों के बाद जब ये सब फरना शुरू होगा तो मां अवश्य खुश होगी। वैसे घर के पीछे हमारे पड़ोसी सब्जियों की खेती करते हैं ज्यादा जरूरत रहती है तो उनसे ही सब्जियां लेते हैं हम। रिक्शा और ठेला पर भी सब्जियां बेचने आ रहे है कुछ लोग। आशा करता हूँ देश के हर परिवार में इस विपत्ति काल में ऐसे ही सब्जियां उपलब्ध हो रही होंगी।
यहाँ कुछ फोटो भी है।
परोर पहली बार जमीं से बाहर झांकता है 


लाल साग और भिण्डी 

घर के पीछे का बैंगन खेत 

 
कढ़ी पत्ता 



सहजन 
पुरानी बस स्टैंड में सब्जी बाजार 


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