यह मैंने दो दिन पहले लिखा था परन्तु पोस्ट नहीं कर पाया था। अभी ध्यान आया तो डाल रहा हूँ और साथ ही आपको सबको इस पोस्ट के माध्यम से रामनवमी की शुभकामना प्रेषित कर रहा हूँ।
कल रात 9:00 बजने ही वाला था कि मां ने कहा- छत पर क्या कर रहे हो?टीवी चालू करके डीडी नेशनल लगाओ। रामायण देखो। मैं जान रहा था कि अभी तक पापा नहीं आए हैं घर में अन्यथा मां मुझसे नहीं कहती दो-तीन दिनों से पापा भी काफी उत्साहित है कि चलो रामायण देखेंगे। करीब 13-14 साल पहले हम जब कोलकाता में रहते थे तो उस वक्त मुझे काफी चस्का लगा हुआ था कार्टून देखने का। डोरेमोन,शिनचैन, पोकेमोन,स्पाइडर-मैन वगैरह देखा करता था।उसी बीच अगर रामायण शुरू हो जाता तो मम्मी रामायण चालू कर देती थी। "कुछ नहीं से अच्छा रामायण ही सही" ऐसा सोचकर मैं भी उसे देख ही लेता था। फिर तो रामायण एकदम नियत समय पर मैं भी देखने लगा था। बहुत से सीन मुझे लगता है कि अभी तक मेरी आंखों में घूमता रहता है। इसलिए मैं फिर से नहीं देखना चाहता हूं क्योंकि समय के साथ यादें भी अपना रूप बदलने लगती है। मैं चाहता हूं कि हनुमान जी की जो यादें बचपन में मेरे मन में बसी वह अब नहीं बदले। ना ही बदले वह भाव जिसमें भारत और लक्ष्मण, राम के प्रति अपना प्रेम दर्शाते हैं।ऐसे ही यादें अन्य कई सीरियल के साथ जुड़े हुए हैं। बचपन में जब मां रोटी बनाती हुई रामायण देखती थी तो वह हमें अपने बचपन की कहानी कभी-कभार सुनाया करती थी।उनके बचपन में गांव में रंगीन टीवी नहीं आया था, ब्लैक एंड व्हाइट टीवी किसी पड़ोसी के यहां आया था और पूरा गांव जमा होता था रामायण देखने के लिए। वैसे मैं कहां से कहां चला गया तो मां के दो बार कहने पर मैंने टीवी चलाई।सीता मां का स्वयंवर का दृश्य था,बड़े-बड़े शूरवीर सभा में बैठे हुए थे। ऐसे में गुरु विश्वामित्र के साथ राम और लक्ष्मण भी पहुंचे। स्वयंवर शुरू होने से पहले महाराज जनक ने शर्त दोहरावाया "शिव के धनुष पर जो वीर प्रत्यंचा चढ़ाएगा, उससे ही जानकी का विवाह होगा।" मुझे आज तक नहीं पता चला कि ऐसा शर्त उन्होंने क्यों रखा ? परंतु कुछ कहानियां अवश्य ही सुनी है उस अद्भुत शिव धनुष के बारे में। पूरी जानकारी तो मुझे भी नहीं है पर फिर भी जेहन में है तो लिख दे रहा हूं। हुआ यूं कि महाराज जनक ने उस महान शिव धनुष को जिसे उनके पूर्वजों ने संभाल कर रखा था उसे एक अति विशिष्ट कमरे में रखवाया था। सीता जब एक बार उस कमरे को साफ कर रही थी तो उन्होंने अपने हाथ से धनुष को एक जगह से हटाकर दूसरे जगह रख दिया और फिर कमरे को साफ करके पूर्ववर्त रखना भूल गयी। यह खबर जब जनक को मिली तब शायद उन्होंने सोचा कि अपनी पुत्री के वर की योग्यता का निर्धारण इस बात से करेंगे कि वह इस धनुष पर प्रत्यंचा तो अवश्य चढ़ा ले। वैसे जहां तक मुझे जानकारी है कि राजा जनक भी उस धनुष को नहीं उठा पाते थे
चलिए आगे चलते हैं। जब सभी शूरवीर उस शिव धनुष को हिला पाने में असमर्थ रहे तो जनक के मन में निराशा के भाव उठे। उन्होंने अपने को उस तरह का निर्णय लेने के लिए कोसा क्योंकि सीता कुमारी ही रह जाती। उसी समय विश्वामित्र की आज्ञा से राम उठे, सभा अट्टहास करने लगी एक सुकुमार राजकुमार को इस प्रतियोगिता में भाग लेने पर। राम ने सभी को प्रणाम किया और धनुष को उठाने के पहले कुछ क्षण सीता को देखा मानो वह मन ही मन आज्ञा ले रहे हो। राम धनुष उठा कर जब प्रत्यंचा चढ़ाने का प्रयास करने लगे तो धनुष टूट गया, सभा हतप्रभ हो गई। जनक की खुशी का ठिकाना ना रहा परंतु तभी भगवान परशुराम क्रोधित होकर वहां पहुंचे।
मां यह सब देख रही थी उसी वक्त पापा और निशांत लौट आये उसके बाद हम सबने साथ मिलकर आगे देखने लगे। शायद दिनभर इधर-उधर मन भटकाने के बाद उस आधे घंटे में हम सबके मन शांत हो गए थे। लेकिन वैसे समय में भी कभी ना कभी कोई न कोई कोरोना की बंदी की चर्चा कर ही देता था। कैसे गरीब लोग मुश्किल में फंसे हुए हैं उसकी बात भी हम कर ही लेते थे।
सियाराम जी की जय
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तस्वीर साभार :इंटरनेट |
कल रात 9:00 बजने ही वाला था कि मां ने कहा- छत पर क्या कर रहे हो?टीवी चालू करके डीडी नेशनल लगाओ। रामायण देखो। मैं जान रहा था कि अभी तक पापा नहीं आए हैं घर में अन्यथा मां मुझसे नहीं कहती दो-तीन दिनों से पापा भी काफी उत्साहित है कि चलो रामायण देखेंगे। करीब 13-14 साल पहले हम जब कोलकाता में रहते थे तो उस वक्त मुझे काफी चस्का लगा हुआ था कार्टून देखने का। डोरेमोन,शिनचैन, पोकेमोन,स्पाइडर-मैन वगैरह देखा करता था।उसी बीच अगर रामायण शुरू हो जाता तो मम्मी रामायण चालू कर देती थी। "कुछ नहीं से अच्छा रामायण ही सही" ऐसा सोचकर मैं भी उसे देख ही लेता था। फिर तो रामायण एकदम नियत समय पर मैं भी देखने लगा था। बहुत से सीन मुझे लगता है कि अभी तक मेरी आंखों में घूमता रहता है। इसलिए मैं फिर से नहीं देखना चाहता हूं क्योंकि समय के साथ यादें भी अपना रूप बदलने लगती है। मैं चाहता हूं कि हनुमान जी की जो यादें बचपन में मेरे मन में बसी वह अब नहीं बदले। ना ही बदले वह भाव जिसमें भारत और लक्ष्मण, राम के प्रति अपना प्रेम दर्शाते हैं।ऐसे ही यादें अन्य कई सीरियल के साथ जुड़े हुए हैं। बचपन में जब मां रोटी बनाती हुई रामायण देखती थी तो वह हमें अपने बचपन की कहानी कभी-कभार सुनाया करती थी।उनके बचपन में गांव में रंगीन टीवी नहीं आया था, ब्लैक एंड व्हाइट टीवी किसी पड़ोसी के यहां आया था और पूरा गांव जमा होता था रामायण देखने के लिए। वैसे मैं कहां से कहां चला गया तो मां के दो बार कहने पर मैंने टीवी चलाई।सीता मां का स्वयंवर का दृश्य था,बड़े-बड़े शूरवीर सभा में बैठे हुए थे। ऐसे में गुरु विश्वामित्र के साथ राम और लक्ष्मण भी पहुंचे। स्वयंवर शुरू होने से पहले महाराज जनक ने शर्त दोहरावाया "शिव के धनुष पर जो वीर प्रत्यंचा चढ़ाएगा, उससे ही जानकी का विवाह होगा।" मुझे आज तक नहीं पता चला कि ऐसा शर्त उन्होंने क्यों रखा ? परंतु कुछ कहानियां अवश्य ही सुनी है उस अद्भुत शिव धनुष के बारे में। पूरी जानकारी तो मुझे भी नहीं है पर फिर भी जेहन में है तो लिख दे रहा हूं। हुआ यूं कि महाराज जनक ने उस महान शिव धनुष को जिसे उनके पूर्वजों ने संभाल कर रखा था उसे एक अति विशिष्ट कमरे में रखवाया था। सीता जब एक बार उस कमरे को साफ कर रही थी तो उन्होंने अपने हाथ से धनुष को एक जगह से हटाकर दूसरे जगह रख दिया और फिर कमरे को साफ करके पूर्ववर्त रखना भूल गयी। यह खबर जब जनक को मिली तब शायद उन्होंने सोचा कि अपनी पुत्री के वर की योग्यता का निर्धारण इस बात से करेंगे कि वह इस धनुष पर प्रत्यंचा तो अवश्य चढ़ा ले। वैसे जहां तक मुझे जानकारी है कि राजा जनक भी उस धनुष को नहीं उठा पाते थे
चलिए आगे चलते हैं। जब सभी शूरवीर उस शिव धनुष को हिला पाने में असमर्थ रहे तो जनक के मन में निराशा के भाव उठे। उन्होंने अपने को उस तरह का निर्णय लेने के लिए कोसा क्योंकि सीता कुमारी ही रह जाती। उसी समय विश्वामित्र की आज्ञा से राम उठे, सभा अट्टहास करने लगी एक सुकुमार राजकुमार को इस प्रतियोगिता में भाग लेने पर। राम ने सभी को प्रणाम किया और धनुष को उठाने के पहले कुछ क्षण सीता को देखा मानो वह मन ही मन आज्ञा ले रहे हो। राम धनुष उठा कर जब प्रत्यंचा चढ़ाने का प्रयास करने लगे तो धनुष टूट गया, सभा हतप्रभ हो गई। जनक की खुशी का ठिकाना ना रहा परंतु तभी भगवान परशुराम क्रोधित होकर वहां पहुंचे।
मां यह सब देख रही थी उसी वक्त पापा और निशांत लौट आये उसके बाद हम सबने साथ मिलकर आगे देखने लगे। शायद दिनभर इधर-उधर मन भटकाने के बाद उस आधे घंटे में हम सबके मन शांत हो गए थे। लेकिन वैसे समय में भी कभी ना कभी कोई न कोई कोरोना की बंदी की चर्चा कर ही देता था। कैसे गरीब लोग मुश्किल में फंसे हुए हैं उसकी बात भी हम कर ही लेते थे।
सियाराम जी की जय
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