श्रीनिवास रामानुजन स्कूली दिनों से ही मेरे लिए प्रेरणा व आकर्षण का केंद्र रहे हैं। मुझे ध्यान नहीं कि मैंने कब पहली बार उनके बारे में जाना था, शायद 2009-2010 का समय रहा होगा या उससे पहले, पता नहीं। परंतु पहली बार में ही मैंने उनकी कहानी में सबकुछ पा लिया था जो अभी तक मेरे साथ है और अब जब भी मैं उनके बारे में पढ़ता हूं तो उससे अधिक कुछ नहीं जान पाता हूं। उनका जीवन छोटा था और दुर्भाग्य से कहानी भी छोटी है पर उस छोटे से जीवन काल में जिस अनंत को उन्होंने छुआ वह निश्चित तौर पर मेरे जैसे बच्चे को प्रेरित करता रहेगा सदियों तक।
मैंने उन पर उपलब्ध हर वीडियो देखा है, हर लेख पढ़ा है सिवाये उनकी गणितीय कार्यों को और यह मेरा दुर्भाग्य है। कभी-कभी लगता है की यह दुर्भाग्य केवल मेरा नहीं है भारत मां का भी है कि अब उनके कार्य और सिद्धांतों में जितनी रुचि विदेशी ले रहे हैं उतना हम भारतीय नहीं ले रहे हैं। 1729 को जब भी कहीं लिखा देखता हूं तो कहीं ना कहीं अचानक से मेरा ध्यान उनके चित्र पर आ जाता है। उनकी दो बड़ी आंखें और वह गंभीर दृष्टि। मानो वह मुझे घूर रहे हैं और पूछ रहे हो कि आखिर क्यों ? क्यों तुमने मुझसे तो प्रेम किया पर गणित में असफल रहे तुम? आखिर क्यों तुम्हें मेरी कहानियों में दिलचस्पी रही पर मेरे समीकरणों को देखा तक नहीं तुमने? सच कहूं तो मुझे डर लगता है उनके इन प्रश्नों को सुनने में और मेरा ध्यान हट जाता है।
रामानुजन की विलक्षण प्रतिभा के सामने पूरा विश्व झुकने लगा था। वह विश्व जो रामानुजन के काल में उनके भाई बंधुओं को गुलाम बना रहा था। उन्हें सर्वोच्च गणितज्ञों के में शुमार किया गया और रॉयल सोसाइटी फेलो बनाया गया,यह सम्मान फिर भी उनके लिए कोई महत्व नहीं रखता था बल्कि यह सम्मान देकर उल्टे देने वाले ही सम्मानित हो गए थे और आज भी गर्व करते हैं इस बात पर। 22 दिसंबर 1887 को जन्म लेने वाले रामानुजन आज ही के दिन सौ साल पहले यानी 26 अप्रैल 1920 को अपनी लीला समाप्त कर गए। कितना कष्ट सहा उनके शरीर ने पर मन में गणित के सिवा कुछ नहीं सूझा उनको। बिस्तर पर पड़े हुए भी गणितीय समीकरणों से उलझे रहते थे। विदेश में भारतीयता न छूट जाए और अपना ब्राह्मण स्वभाव ना भूल पाए इसलिए रूखी सूखी जो भी खाते स्वयं बनाते । मैं जितनी बार उनको ध्यान करूंगा बस उनका कष्टकारी जीवन ही देख पाऊंगा, उनका गणित प्रेम ही देख पाऊंगा, उनके आनंद से झूमते मस्तिष्क के अंदर झांकने की मेरी हर कोशिश आज तक नाकाम रही है।
नमन