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इकतारा प्रकाशन: चित्र हिमांशु उजिनवाल |
"भगजोगनी "
हाँ, भगजोगनी ही कहा था माँ ने
जब मैंने पहली बार इंसान के इतर
किसी का परिचय पूछा था।
कुत्ता,बिल्ली, टिकूली,बेन्ग, सांप से
भेंट-मुलाकात हो चुकी थी उस उम्र में।
शाम को जब माँ के साथ लालटेन का शीशा साफ करता था तो
बहुत सारे टिमटिमाते जुगनू आस-पास मंडराते थे
मानों कह रहे हो कि
लालटेन क्यों जलाओगे ?
हम हैं न।
रात होने पर खटिया पर लेटे-लेटे आसमान के तारे
गिना करता था तो अक्सर
ये पीली बत्ती भूक-भाक करते आ जाते थे
मेरी आँखों और तारों के बीच।
मानों कह रहे हो कि
तारों की गिनती तो खैर तुम कर भी लोगे।
हमारी तादाद थोड़े ही पता कर पाओगे ?
भगजोगनी नाम माँ ने शायद इसलिए ही दिया था।
एक जोगिनी की तरह हर बार विस्मय में
डाल जो देती थी ये सब।
आगे चलकर विज्ञान की किताबों में
जुगनुओं के बारे में और पढ़ा पर सोचता हूँ
विज्ञान के बल्ब और बच्चों के बीच -
क्या अब भी भगजोगनी आती होगी ?
जैसे उस वक़्त मेरे और तारों के बीच आया करती थी।
एक बात बताऊँ परसो रात
मैं सड़क किनारे एक खेत में खड़ा था
जैसे ही बिजली कटी, दूर जल रहा एक बल्ब बुता।
वो फिर आ गई
एक से दो होकर अनेक हो गई।
मानों पूछ रही हो कि
क्यों मैंने उनसे बतियाना छोड़ दिया ?
क्या मैं गणित के सारे हथकंडे
अपनाकर तारों को गिन पाया हूँ ?
घुप अँधेरे में भी मुझे
उनकी पीली रौशनी थोड़ी उदास लगी।
महसूस हुआ जो वो नहीं कहना चाह रही थी।
अब उनकी संख्या कम हो गई है
इसलिए वो दम्भ उनकी रौशनी में नहीं रहा।
मैं झूठा विश्वास नहीं दिला पाया
जैसा मैं इंसानों को दिलाता हूँ
फिर भी कहा कि
मेरा बस चलेगा तो मैं दुनिया के सारे बल्ब फोड़ दूंगा
और खेतों में चारपाई लगाकर
बैठ बतियाऊंगा एक-एक भगजोगनी से।
- प्रशान्त
गूगल से साभार |
बहुत सुंदर और अविष्मरणीय अभिव्यक्ति बचपन और याथार्थ की.. बचपन याद भी दिलाती हुई और अफसोस भी जताती हुई बचपन के छूट जाने का
ReplyDeleteशुक्रिया।
Deleteपुरानी यादें फिर से ताजा हो गई।
ReplyDeleteफिर से जगनूओ को महसूस करने लगे हैं।
एक उम्र वो थी
कि जादू पर भी यकीन हो जाता था।
एक उम्र ये है ।
की हकीकत पर भी शक होता है।
शुक्रिया॥
Deleteआपने बिलकुल सही लिखा है, बचपन और जादू ने अपना वजूद खो दिया समय के साथ।