Saturday, June 11, 2022

एक पल की विवेचना

 सबसे अच्छा था 

तुम्हारा चुपचाप चला जाना 

मुझे विदा करने न आना। 

तुम्हारे लिए पता नहीं किन्तु मेरे लिए

हाँ, यही अच्छा था। 


उस रोज हुई एक लापरवाही ने 

कुछ पल का सुख तो दिया था 

साथ में जीवन पर्यन्त का पीड़ा भी मिला था। 

मेरे आँखों में तुम्हारी अंतिम स्मृतिचित्र 

तुम्हारा मुस्कुराने का ढोंग करते हुए मायूस चेहरा न होकर 

दूर जाती पीठ होती तो 

जीवन ज्यादा सुखदायी होता। 

यूँ रह रह कर तुम्हारी याद गर आती भी तो 

निराशा मन को घेरती 

और मशक्कत नहीं करनी पड़ती 

हर पंद्रह-बीस दिन में तुम्हे भूलने की।  


वो तो अच्छा हुआ कि तुमने 

केवल अलविदा कहा था 

रोकर गले नहीं लगाया था। 

न जाने कितनी रातें और जागना पड़ता 

उस अनुभव की याद में। 


-

प्रशांत 

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