Sunday, May 15, 2022

भगजोगनी

इकतारा प्रकाशन: चित्र हिमांशु उजिनवाल 



"भगजोगनी " 

हाँ, भगजोगनी ही कहा था माँ ने 

जब मैंने पहली बार इंसान के इतर 

किसी का परिचय पूछा था। 

कुत्ता,बिल्ली, टिकूली,बेन्ग, सांप से 

भेंट-मुलाकात हो चुकी थी उस उम्र में। 

शाम को जब माँ के साथ लालटेन का शीशा साफ करता था तो 

बहुत सारे टिमटिमाते जुगनू आस-पास मंडराते थे 

मानों कह रहे हो कि 

लालटेन क्यों जलाओगे ?

हम हैं न। 


रात होने पर खटिया पर लेटे-लेटे आसमान के तारे 

गिना करता था तो अक्सर 

ये पीली बत्ती भूक-भाक करते आ जाते थे 

मेरी आँखों और तारों के बीच। 

मानों कह रहे हो कि 

तारों की गिनती तो खैर तुम कर भी लोगे। 

हमारी तादाद थोड़े ही पता कर पाओगे ?


भगजोगनी नाम माँ ने शायद इसलिए ही दिया था। 

एक जोगिनी की तरह हर बार विस्मय में 

डाल जो देती थी ये सब। 

आगे चलकर विज्ञान की किताबों में 

जुगनुओं के बारे में और पढ़ा पर सोचता हूँ 

विज्ञान के बल्ब और बच्चों के बीच -

क्या अब भी भगजोगनी आती होगी ?

जैसे उस वक़्त मेरे और तारों के बीच आया करती थी। 


एक बात बताऊँ परसो रात 

मैं सड़क किनारे एक खेत में खड़ा था 

जैसे ही बिजली कटी, दूर जल रहा एक बल्ब बुता। 

वो फिर आ गई 

एक से दो होकर अनेक हो गई। 

मानों पूछ रही हो कि 

क्यों मैंने उनसे बतियाना छोड़ दिया ?

क्या मैं गणित के सारे हथकंडे 

अपनाकर तारों को गिन पाया हूँ ?

घुप अँधेरे में भी मुझे 

उनकी पीली रौशनी थोड़ी उदास लगी। 

महसूस हुआ जो वो नहीं कहना चाह रही थी। 

अब उनकी संख्या कम हो गई है 

इसलिए वो दम्भ उनकी रौशनी में नहीं रहा। 

मैं झूठा विश्वास नहीं दिला पाया 

जैसा मैं इंसानों को दिलाता हूँ 

फिर भी कहा कि 

मेरा बस चलेगा तो मैं दुनिया के सारे बल्ब फोड़ दूंगा 

और खेतों में चारपाई लगाकर 

बैठ बतियाऊंगा एक-एक भगजोगनी से।


- प्रशान्त 


 

गूगल से साभार 





Sunday, May 08, 2022

माँ के लिए समय का अर्थ

 


मुश्किल लगता है इतनी लम्बी जिंदगी में,

किसी के लिए वक़्त के दो क्षण निकालना। 

फिर भी मेरी माँ ने 

जो भी जीवन जिया 

जितना भी समय दिया 

बस मेरे लिए दिया। 


लोग अक्सर कहते हैं जन्म से पहले भी 

9 महीने मेरे लिए समर्पित किया था उन्होंने 

पर 3-4 वर्षों के बाद जब शायद पहली बार मैं 

पूरी तरह होश में रहा होऊंगा 

तब तक और शायद अबतक 

मैं यह नहीं जान पाया कि इस दुनिया में जब लोग 

एक-एक मिनट के बदले कुछ चाहते हैं। 

माँ ने बिना कुछ चाहे 

कैसे अपना सारा वक़्त मुझे दे दिया ?

परिवार,समाज,ममता 

क्या रहा होगा कारण ?

जब उन्होंने मेरे लिए अपना 

समय समर्पित करने का निर्णय लिया होगा ?

असंख्य कारणों में,

हजारों शब्दों में 

कौन सा वह रूप लेकर मैंने उनसे उनका 

समय मांगने की हिम्मत की होगी ?


या बिना मांगे ही मुझे मिला 

वह सब जो शायद नहीं मिलता 

अगर माँ कुछ और सोच लेती 

मात्र एक पल को। 

एक निर्णय कि

 "मैं अपना सारा समय तुम्हे देती हूँ।"

एक क्षण में लेना। 

जबतक मैं मना नहीं करता  हूँ। 


"वह अपना समय मुझे कैसे दे सकती है ?"

 मैं नहीं पूछता यह सवाल। 

पर समय की कीमत को 

सफलता से जितनी बार मैंने जोड़ा 

शायद मैं असफल हुआ हर बार। 

माँ सफल हुई या नहीं हुई 

यह तय माँ के अलावा कौन कर सकता है ?

मुझे उत्तर कब और कहाँ मिलेगा 

यह समझना मेरी शक्ति से बाहर लगता है। 

?????  


सफाई विद्यालय : ग्राम्य मंथन के एक सत्र में लिखा गया 

कई बार ऐसा लगता है कि इतने साल बीत जाने के बाद भी तुमसे कभी बात नहीं हो पाई, तुम हो भी तो वैसी ही जिद्दी।  सुबह जब सूर्य भी नहीं सोचता है कि अब जागने का समय हुआ है तब से तुम जग जाती हो और भंसाघर में सफाई शुरू कर देती हो और रात जब चाँद सोने को जाने लगता है तब करीब एक-डेढ़ बजे तुम सोने जाती हो। इस बीच में तुम सबका ख्याल रखने में इतना व्यस्त होती हो कि मैं कुछ बात करना चाहूँ भी तो कैसे करूँ यह सोचकर अगले दिन का इंतज़ार करता हूँ। मुझे कभी कभी लगता है कि सबसे तुम्हारे बारे में बातें करूँ और सबसे सुनूं। माँ प्रणाम। 

Popular on this Blog