Monday, December 06, 2021

जब सब कुछ हो जाएगा ठीक



 जब सब कुछ हो जाएगा ठीक

तो मैं भी मुस्कुरा लूंगा

 कुछ गाने सुन लूंगा 

खुशी के गीत गा लूंगा 

समय निकालकर तुमसे यूं ही बतिया लूंगा.


जब सब कुछ हो जाएगा ठीक

तो मैं भी यारी निभा लूंगा

 किसी को याद करके चुपके से मुस्कुराउंगा

 किसी राहगीर को रोक हाल-चाल पुछुंगा

थोड़े किस्स सुनूंगा-सुनाउंगा.


 जब सब कुछ हो जाएगा ठीक

 तो मैं भी दिवाली में दीप खुशी के जलाऊंगा

 होली में ना रखूंगा मन को बेरंग

 सालभर से रक्षाबंधन का इंतजार करूंगा

 केवल अपने घर पर नहीं 

पड़ोसियों के घर में भी त्यौहार की खुशियां बिखेरुंगा.


 जब सब कुछ हो जाएगा ठीक

 तो मैं भी अच्छी बातें करूंगा

 ढलते सूरज को देखुंगा

 सोने से पहले आसमान निहारुंगा

 लकड़ियां इकट्ठे कर खुद ही खाना बनाऊंगा

मां, तेरे संग खाउंगा.


जब सब कुछ हो जाएगा ठीक 

तो मैं भी ठीक हो जाऊंगा.


जब सब कुछ हो जाएगा ठीक 

तो मैं भी मछलियां पकड़ने जाऊंगा

 नदी किनारे टहलुंगा

 गायों को चराते समय बंसी बजाउंगा

 लेन-देन से ऊपर उठुंगा

 देने में ना कतराउंगा.


 जब सब कुछ हो जाएगा ठीक 

तो मैं भी किसी को तंग नहीं करूंगा 

जो जैसे है वह वैसे ही रहने दूंगा

 बेख़ौफ़ गलतियां करूंगा 

ख़ुशी से माफ कर दिया करूंगा 


जब सब कुछ हो जाएगा ठीक 

तो मैं भी धैर्य रखुंगा

इंतजार करूंगा...



यह जानते हुए कि कुछ भी ठीक नहीं होने वाला है या फिर शायद जो हो चूका है वो भी ठीक ही हुआ है मैंने अपने जीवन को जीया है . सब कुछ ठीक हो जायेगा ऐसा सोचकर शायद जीवन को जी पाना अजीब नहीं होता है बल्कि उम्मीद बनी रहती है जो शायद टूट जाना भी बेहतर हो . ठीक सबकुछ हो न हो पर जब समय ख़त्म होने लगता है तो एक क्षण को महसूस होता तो है कि हम भी कहाँ उतने ठीक हो पाए थे जितना कि होना चाहिए था . 

-प्रशांत 



      तस्वीर छत्तीसगढ़ के रेवामंड गांव की है जहां एक  आधुनिक आदिवासी बाकी आदिवासियों से यह जानने को प्रयासरत है कि आखिर जब सब कुछ ठीक हुआ है तो गलती कहां हुई है?


















2 comments:

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