Wednesday, November 06, 2019

विचार यात्रा



कभी कभी मन ऐसे शांत हो जाता है जैसे अथाह समुद्र चुपचाप इंतज़ार कर रहा हो चाँद का कि कब वो नीचे उतरे और अंतहीन बातें शुरू हो जाये दोनों के बीच। क्या समुद्र के शांत होने की कल्पना करना उचित है ?संभवतः नहीं पर कुछ हद तक हाँ। यह निर्भर करता है कि हमारे मन में क्या चल रहा है।
ये शांति ऐसी अजीब लगती है कि मन व्याकुल हो जाता है,परेशां हो जाता है।
कभी कभी विचारों की आंधियां उठती है, वे अच्छाई का चद्दर ओढ़कर आना शुरू करती है,धीरे धीरे मालूम पड़ता है कि कितने बुरे विचार साथ में आये हुए है। कभी ऐसा लगने लगता है कि यह आंधी अब रुकने वाली नहीं है,अब जीवन ऐसे ही चलेगा। ये विचार जीवन के विभिन्न काल से निकलकर आते हैं। यादे,सपने,चिंताएं,कपोल कल्पनाएं और न जाने क्या-क्या। उस दरमियां शरीर भी एक जगह चैन से बैठ नहीं पाता है, लाख कोशिश करता है, कभी पानी पीने को उठता है तो कभी किसी और काम हेतु परन्तु कोई फायदा नहीं। संगीत का कोई ऐसा स्वर-लहरी भी याद नहीं रहता कि मन को बहला लिया जाये। कह सकते है हम पूरी तरह से किसी अनजान के गिरफ्त में होते हैं,पर यह भयभीत नहीं करता।
मन को शांत करने के सारे तरीके असफल होते देख व्याकुलता और बढ़ जाती है। अगर मन व्याकुल है तो हमने जितने भी उपाय सोच रखे हों,कोई काम नहीं आता। ऐसी हालत में हमारे सामने कोई भी जरूरी काम हो,हम करना नहीं चाहते पर मजबूरीवश करने का नाटक तो कर ही लेते है। सबसे आसान लगता है ऐसे में समय काटना। आजकल तो सबसे आसान तरीका भी हाथ में ही मिल जाता है, इंटरनेट के गहरे खाई में छलांग लगा देने की देरी होती है बस।
कभी कभी मन किसी घटना पर अटक जाता है, वह घटना याद करने लायक हो या न हो पर उस समय उसके विभिन्न अयं  क्रोध ,लोभ ,मोह आदि का रूप  लेकर ऐसा माहौल तैयार करती है कि असर उस समय के निर्णय को पलटने की ताकत रखती है।
ऐसे में समय बर्बाद होता है या नहीं वो अपना अपना नजरिया है पर वाजिब सवाल हम बाद में कर सकते है जिसके जवाब शायद हमें कभी न मिले। क्या उपाय हो सकता है इससे बचने का ? ऐसे में हम ये भी सोच सकते है कि कितना मुश्किल होता है खुद को समझना और कितना आसान लगता है दूसरों को समझने का ढोंग करना ?

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