Saturday, April 28, 2018

देखना और सोचना

वो पूछते हैं कि तुम क्या देखते हो, तुम क्या सोचते हो?
मैं जवाब दे नहीं पाता हूँ और कभी कभार दे देता हूं तो वो स्वीकार नहीं पाते हैं। इसलिए अक्सर चुप रहता हूँ और अब तो स्थिति ऐसी होने लगी है कि कुछ बताना भी चाहूं तो मौन के पहले भी एक बैरियर मिलता है।


मैं क्या देखता हूँ?
कुछ खास नहीं। जो सब देखते हैं, वही मैं भी देखता हूँ। देखने में मनाही थोड़े है। आखों पर जोर नहीं चलता है किसी का। नाक व कान के बाद आंखों का ही तो नंबर आता है। जो भी सामने होता है देखना पड़ता है। ज्यादा देर तक मैं आंखें बंद कर नहीं रह पाता हूँ, बाद में भले पछताता हूँ।
भगवान् ने मुझे कोई अलग थोड़े दृष्टि दी है कि कुछ अलग देखूं। जानता हूँ कि मेरे बताने से पहले भी वो सबने देखी होगी। इसलिए 'मैं क्या देखता हूँ' का उत्तर और अधिक सरल हो जाता है। सरलता पर कोई ध्यान भी तो नहीं देता है तो बताने का कोई फायदा भी नहीं।

मैं क्या सोचता हूँ?
सोचता था आज से पांच-दस साल पहले, अब तो बस..... । कुछ कह नहीं सकता। कहने लायक कुछ खास नहीं है पर अलग जरुर है क्योंकि सब अलग अलग से सोचते हैं। एक नहीं बल्कि अनगिनत बातें सोचता हूँ। कुछ ऐसी और कुछ वैसी।कुछ सुंदर तो कुछ गंदे।खैर गंदगी को वहीं छोड़कर मैं बाकि बताने की कोशिश करता हूं। भविष्य के बारे में सोचता हूँ। कभी भविष्य में खो जाता हूँ तो भूत मुझे याद दिलाता है कि मैं कुछ गलत सैच रहा हूँ। कभी बीती बातों को जगह देता हूं तो उसपर हजार और विचार निकलते हैं। सोचना सबसे आसान काम लगता है पर कोई कह दे कि ये सोच कर बताना तो सच कहता हूँ आज तक नही बता पाया हूँ। मैं क्या सोच भी सकता हूँ, वही घर परिवार और वही समाज की बातें।मैं देश के बारे में नहीं सोच पाता हूँ पर मिट्टी को भूल भी नहीं पाता हूँ। पेड़ पौधे और आकाश, ये सब सोचने में शामिल होते हैं पर चिड़ियों की कलरव(आजकल बहुत कम सुनने को मिलता है) और गिलहरी का लगातार बोलना मेरे सोचने की दिशा बदलने में मदद करती है। मैं अपने भाई बहनों के बारे में सोचता हूँ, जिनसे नहीं मिल पाया हूँ उनके बारे में सोचता हूँ। उनके खेलों के बारे में सोचता हूँ और पढाई-लिखाई के बारे में। सोचता हूँ कि मैं कौन होता हूँ उनके बारे में सोचने वाला पर ' मुझसे तेरा मोह न छूटे दिल ने बनाये कितने बहाने' वाला हाल है।प्लास्टिक खाती पवित्र गौओं के बारे में सोचता हूँ। हरे भरे खेतों के बारे में सोचता हूँ। आम के बाग में घूमने को सोचता हूँ। नदी में फैलती गंदगी के बारे में सोचता हूँ। इंसानों के मन में बैठती गंदगी को भी समय देता हूँ पर ये सब उस लिस्ट का शून्य भी नहीं है। भगवान के बारे में सोचने को कह गये हैं हमारे पूर्वज पर मैं उतना भाग्यशाली भी तो नहीं।

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