Tuesday, December 07, 2021

सच वही जो तुम मानो

 




लोगों से बनती है हमारी दुनिया

पूरी नहीं तो कम से कम 

आधी से ज्यादा

ये दुहराकर कि 

'लोगों का काम है कहना'

मैं कैसे नकार दूं कि

बिना सोचे चेहरे पर भाव नहीं आते है 

आजकल

शब्द कैसे आयेंगे



लोगों की सोच जब सामुहिक होती है 

तब बनता है हमारा समाज

समाज को नकार पाना

अगर आसान होता

तो हम वो नहीं होते 

जो हैं हम

आखिर होश संभालने से पहले 

यूं ही तो नहीं समाज संभालने लगता है हमें

और हां हमारा समाज अब नहीं बनने वाला



लोगों की चुप्पी से बनते हैं

इस दुनिया के नियम कानून

बिना किसी आदर्श के

निरा खोखला और उबाउ

जो मस्तिष्क पर बोझ के सिवा क्या ही होता है

समय के आगे देखो तो सड़ाध ही रहता है

छोड़ो आगे की बात

पिछले नियमों के हाल भी समझा सकता है

कि चुप्पी ने कितना नुक़सान किया है



लोगों के आंसुओं से बनता है

एक तालाब

जिसमें मछलियां रहे न रहे

पर रहती है जीवों की उम्मीद

कितना विशाल

कितनी छोटी

तय कौन करता है एक जमाने के बाद

एक आदमी का दंभभरा अट्टहास


काश ऐसा होता कि एक आदमी

जो खुद को अकेला कहता है

असलियत में अकेला रहता तो 

मालूम पड़ता कि

एक सुखे पत्ते का जंगल में कोई काम नहीं 

सिवाय मिट्टी बन जाने के

आग में भागीदारी कर जंगल जलाने के


काश होता दार्शनिकों की बातें

भी उतना ही सच

जितना सच होता है लोगों की बातें

क्यों किताबों से बाहर नहीं हो पाया है 

इनकी चित्तप्रिय बातें

क्यों मौन से भी महत्वहीन है

ये विचार


लगता है 

कुछ बातें अच्छी

आम बातें बेकार 

कुछ बढ़िया खोजना,सुनाना, पढ़ाना

हर कोई चाहता है

लेकिन मैं जानता हूं

जो नैसर्गिक नहीं है

तो कुछ भी सुंदर नहीं है वो

तुम भी जानते हो 

लेकिन किंतु परंतु

जानने और मानने में जो फर्क है

उसी बीच में जिंदगी है,लोग हैं


आखिर कर भी क्या सकते हैं

लोगों के बीच रहकर कैसे 

अलग रह सकतें हैं

आखिर फिर से मिलना ही पड़ता है

'अंत भला तो सब भला'

कहना ही पड़ता है

जीवन जीना 

मौत का इंतजार ही तो है


-वही जो आप समझ रहे हैं, वह बिल्कुल नहीं जो लोग समझ रहे हैं


Monday, December 06, 2021

जब सब कुछ हो जाएगा ठीक



 जब सब कुछ हो जाएगा ठीक

तो मैं भी मुस्कुरा लूंगा

 कुछ गाने सुन लूंगा 

खुशी के गीत गा लूंगा 

समय निकालकर तुमसे यूं ही बतिया लूंगा.


जब सब कुछ हो जाएगा ठीक

तो मैं भी यारी निभा लूंगा

 किसी को याद करके चुपके से मुस्कुराउंगा

 किसी राहगीर को रोक हाल-चाल पुछुंगा

थोड़े किस्स सुनूंगा-सुनाउंगा.


 जब सब कुछ हो जाएगा ठीक

 तो मैं भी दिवाली में दीप खुशी के जलाऊंगा

 होली में ना रखूंगा मन को बेरंग

 सालभर से रक्षाबंधन का इंतजार करूंगा

 केवल अपने घर पर नहीं 

पड़ोसियों के घर में भी त्यौहार की खुशियां बिखेरुंगा.


 जब सब कुछ हो जाएगा ठीक

 तो मैं भी अच्छी बातें करूंगा

 ढलते सूरज को देखुंगा

 सोने से पहले आसमान निहारुंगा

 लकड़ियां इकट्ठे कर खुद ही खाना बनाऊंगा

मां, तेरे संग खाउंगा.


जब सब कुछ हो जाएगा ठीक 

तो मैं भी ठीक हो जाऊंगा.


जब सब कुछ हो जाएगा ठीक 

तो मैं भी मछलियां पकड़ने जाऊंगा

 नदी किनारे टहलुंगा

 गायों को चराते समय बंसी बजाउंगा

 लेन-देन से ऊपर उठुंगा

 देने में ना कतराउंगा.


 जब सब कुछ हो जाएगा ठीक 

तो मैं भी किसी को तंग नहीं करूंगा 

जो जैसे है वह वैसे ही रहने दूंगा

 बेख़ौफ़ गलतियां करूंगा 

ख़ुशी से माफ कर दिया करूंगा 


जब सब कुछ हो जाएगा ठीक 

तो मैं भी धैर्य रखुंगा

इंतजार करूंगा...



यह जानते हुए कि कुछ भी ठीक नहीं होने वाला है या फिर शायद जो हो चूका है वो भी ठीक ही हुआ है मैंने अपने जीवन को जीया है . सब कुछ ठीक हो जायेगा ऐसा सोचकर शायद जीवन को जी पाना अजीब नहीं होता है बल्कि उम्मीद बनी रहती है जो शायद टूट जाना भी बेहतर हो . ठीक सबकुछ हो न हो पर जब समय ख़त्म होने लगता है तो एक क्षण को महसूस होता तो है कि हम भी कहाँ उतने ठीक हो पाए थे जितना कि होना चाहिए था . 

-प्रशांत 



      तस्वीर छत्तीसगढ़ के रेवामंड गांव की है जहां एक  आधुनिक आदिवासी बाकी आदिवासियों से यह जानने को प्रयासरत है कि आखिर जब सब कुछ ठीक हुआ है तो गलती कहां हुई है?


















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