Friday, November 26, 2021

कुछ दिन की यात्रा

 



एक ऐसी सामूहिक यात्रा जिसमें आप शामिल होने से पहले एक दूसरे को जानते तक नहीं, ना आपने कभी उनकी बातें सुनी है, न चेहरा देखा है और ना ही व्यवहार को जाना है। यहां तक कि यात्रा में शामिल होने का आपका उद्देश्य उतना ही भिन्न हो सकता है जितना बाकी यात्रियों का। यात्रा में शामिल होने के बाद यह आप पर निर्भर करता है कि क्या आप इस यात्रा में सामूहिक रूप से शामिल होने के बाद भी अकेले रह जाते हैं या अपने अकेलेपन से बाहर निकल कर सामूहिकता को स्वीकार कर पाते हैं ? यह जानना कि 'यात्रा मन के भीतर भी चल रही होती है और बाहर भी' यात्रा को और भी रोचक बना देता है।

 हर एक बदलते पल के साथ बदलती रहती है परिस्थितियां और एक दूसरे के प्रति नजरिया भी। चुकी अब यात्रा में सभी एक साथ तो हैं लेकिन पहले से एक दूसरे के प्रति कोई नजरिया या कोई धारणा नहीं रखें रहते हैं इसलिए हर एक बीतते पल के साथ मन में धारणाओं का अंबार भी बनता रहता है यह अच्छी है-बुरी है इन सबसे अलग। लेकिन सूचनाओं के साथ-साथ भावनाएं भी लगातार यात्रा के दौरान मन पर हावी होता रहता है।

आपकी आंखें खुली हो या बंद कुछ ना कुछ तो लगातार घटते ही रहता है कुछ लोग खुली आंखों से भी देख नहीं पाते और कुछ लोगों को बंद आंखों से भी कई अनुभव हो जाते हैं। यात्रा के दौरान यह जरूरी नहीं यह आपका ग्रहण करने का क्षमता कितना है बल्कि इस बात पर भी कई चीजें निर्भर करती है कि आपने पहले से कितना ग्रहण किया हुआ है? दृश्यों की बात ना भी करें तो अनुभव कई और माध्यम से भी होते हैं।कइ बार यह आप पर निर्भर बिल्कुल नहीं करता कि आप कौन से अनुभव अपने पास संजोकर रख पाते हैं। कुछ आवाजें आपको जीवन भर एक खास तरह की भावना में ले जाती है और कुछ ऐसे भी होते हैं जो अपना स्वरूप अगले ही पल से बदलते रहता है। मुझे यह सोचने पर अक्सर मजबूर होना पड़ता है कि ऐसे में यात्री मन आगे बढ़ता है यहां फिर यात्रा आगे बढ़ता है।

कुछ यात्राओं का उद्देश्य साफ होता है इसलिए घटनाएं भी उम्मीद के मुताबिक रहती है। किंतु कुछ यात्राओं में अक्सर बहुत सारी चीजें अप्रत्याशित ही रह जाती है, इस वजह से यात्रा और भी आनंददायक हो जाता है, कई बार पीड़ा जनक भी हो जाता है। अगर एक उदाहरण से समझा जाय तो हम टमाटर के एक पौधे लगाने से फल आने तक को भी यात्रा मान सकते हैं। कई बार फल मन मुताबिक आता है और कई बार पौधे भी मर जाया करते हैं। पौधे के सुख जाने से यात्रा खत्म नहीं हो जाता है, मन पर अतिरिक्त बोझ जरूर पड़ जाता है की अगली यात्रा कैसी होनी चाहिए।

एक छोटी यात्रा से जीवन के मर्म भी कभी कभार समझ में आ ही जाते हैं लगता है कि कागज की कश्ती में हम सवार हैं फिर भी कल की चिंता कम होती ही नहीं है। यह चिंताएं भी तो यात्रा का ही हिस्सा रहना चाहती है जो कल घट चुका है वह फिर से कल घटने को तैयार होता है। कुछ लोग पुराने कल में जीने लगते हैं और कुछ लोग आने वाले कल की तैयारियां शुरू करते हैं कुछ लोगों को छोड़ दिया जाए तो अधिकतर यह भूल जाते हैं कि आज ही वह है जिसके लिए हम यहां आए हैं।

यात्रा कब समाप्त होती है यह भी सामूहिक रूप से तय नहीं किया जा सकता किसी के लिए यात्रा शुरू होने से पहले ही खत्म हो चुकी होती है और किसी को बीच में ही अपने उद्देश्य मिल चुके होते हैं या फिर वह भटक जाते हैं सामूहिकता का ताना-बाना ऐसा टूटता है लगता है जैसे एक पूर्णिमा की रात में अंधेरा छा गया हो।कई बार यात्रा समाप्त होने के बाद भी किसी का यात्रा शुरू होता है।

(यह बातें मैंने निर्माण यात्रा के अनुभवों के आधार पर लिखा है कई बार यह बातें मेरी ही अन्य अनुभवों से अलग होती है तथापि सब स्वीकार्य है।)


- प्रशांत




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