Monday, August 02, 2021

एक घर से दूसरे घर में जाना कैसा होता है ?






एक घर से दूसरे घर में जाना कैसा होता है ?
कैसा होता है लोगों का नया जीवन और कैसी होती है नई मानसीकता ? कैसा होता है उस पुराने घर के लिए और कैसा होता है माहौल नए घर में ? लोग तो घर बदल लेते हैं, कई बार परिस्थितियों से विवश होकर तो कई बार स्वयं की इच्छा से।  किन्तु क्या वह पुराना घर वैसा ही रह जाता है, जैसा वह शुरू में था जब उसमे लोग आये थे। मैं जवाब नहीं दे सकता हूँ क्यूंकि मैंने प्रश्न करने का हिम्मत अभी तक नहीं जुटाया है जबकि मेरा परिवार एक घर से दूसरे घर में कुछ दिनों पहले पूर्णिमा को ही चला आया है। होश सँभालने के बाद एक - दो नहीं, कम से कम दो दर्जन घर मैंने बदले हैं, इसमें पटना और दिल्ली के वो मकान भी शामिल है जिसे लोग डेरा कह जाते हैं बड़े ही आसानी से।  मेरे लिए डेरा कहना काफी मुश्किल रहा है।  इसलिए घर ही कहता आया हूँ , अपार्टमेंट, फ्लैट और मकान जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं हुआ है मेरे मुँह से। कारण है, कुछ मन की बात है जो शब्दों में बदल नहीं पा रहा हूँ और कुछ परवरिश का असर है। 

मैंने कई लोगों को देखा है, एक घर से दूसरे घर में जाते हुए। लोग पुराने घर में कुछ भी नहीं छोड़ते हैं सिवाय कबाड़ के और हर जगह बताते है की उनकी केवल यादें छूती है उस घर में परन्तु मुझे लगता है सबकुछ छूट चूका होता है उस घर में सिवाय लोगों और सामान के। यह बात बिलकुल भी नहीं अचंभित करता है मुझको जब मैं स्वयं को अक्सर पाता हूँ भूत में किसी घर में सोते हुए। शायद उसमे अब कोई और रह रहा हो किन्तु मेरा रहना उसमे और उस घर का रहना मुझमे कोई कैसे रोक सकता है ? 


गृह प्रवेश एक बढ़िया आदत है नए घर में देवी-देवताओं और स्वयं के स्वागत का किन्तु क्या ऐसा होता है कि देवी-देवता मनुष्यों के हिसाब से आते हों नए घर में ? शायद नहीं या हां भी। एक दिन माँ से बात करते करते मैंने कहा कि भले ही इतराओ कि तुम नए घर में आ गई हो किन्तु पूर्वजों घर हमसे छूटे नहीं छूटेगा। हम पत्रों पर वर्तमान पता बदल ही लें लेकिन नहीं बदल पाएंगे अपने असंख्य पूर्वजों के यादों में हमारा निश्चित पता।  अगर कोई देवता या कोई पूर्वज खोजते हुए आ जाये किसी दिन तुम्हे कि मीना ( माँ का नाम ) किधर होगी अभी तो सबसे पहले वह पूर्वजों के द्वारा निर्देशित होगी ( ठीक वैसे ही जैसे पत्र में पिनकोड होता है निर्देश के लिए ) और वहां जाने पर देवता को मालूम पड़ेगा कि अभी पिछले महीने ही तो हमने नए घर में प्रवेश किया है।अगले कुछ ही सालों में हम एक और नया घर खरीदने या बनाने का सोचने भी लगते हैं। हम गृह प्रवेश में चाहकर भी सबको सूचित नहीं कर पाते हैं कि हमने अपना पता बदल लिया है। 
पुराना घर उन असंख्य चिठ्ठियों को आने वाले समय तक संभालने की कोशिश करता रहेगा इस इंतज़ार में कि एक दिन हम लौट आएंगे, जैसे लौट आती है नदी समुद्र में। 

-प्रशांत 

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